करनाल का मधुमक्खी पालक बना मिसाल, गार्ड की नौकरी छोड़कर बनाई पहचान

  • अब शहद से सालाना कमा रहा 40 लाख रुपए
करनाल हरियाणा में करनाल जिले के पबाना हसनपुर गांव के संजय ने गार्ड की नौकरी छोड़कर मधुमक्खी पालन शुरू किया। 10 हजार की नौकरी करने वाला संजय आज 30 से 40 लाख रुपए सालाना आमदनी कर रहा है। मधुमक्खी के 9 बॉक्स से शुरुआत करने वाला संजय आज 50 बॉक्स से शहद का उत्पादन ले रहा है।

सीजनल उत्पादन की बात की जाए तो एक बॉक्स से 10 से 12 किलोग्राम शहद का उत्पादन हो जाता है और ऐसे 50 बॉक्स से 10 दिन में ही छह क्विंटल शहद मिल जाता है और महीने में 18 क्विंटल शहद उत्पादित होता है। संजय अपनी स्टॉल पर 350 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से शहद बेचता है। चूंकि गुणवत्ता उच्च स्तर की है तो ग्राहक भी शहद खुशी-खुशी से खरीदता है।

करनाल किसान मेले में अपनी स्टॉल लगाए किसान संजय।
करनाल किसान मेले में अपनी स्टॉल लगाए किसान संजय।

एक महीना की गार्ड की नौकरी
संजय ने बताया कि उसने BA की और नौकरी की तलाश में निकला गया, काफी भागदौड़ करने के बाद उसे जेएनयू में गार्ड की नौकरी मिल गई। 12 घंटे की नौकरी से वह सिर्फ 10 हजार रुपए कमाता था, लेकिन वह इस नौकरी से बिलकुल भी खुश नहीं था। उसने जैसे-तैसे एक महीना नौकरी की और नौकरी छोड़कर घर लौट आया। वह सोच विचार में डूबा रहता था कि वह क्या काम करे। फिर उसके एक साथी किसान ने उसे मधुमक्खी पालन का आइडिया दिया और फायदे भी बताए।

9 बॉक्सों से शुरू किया था मधुमक्खी पालन
संजय बताते हैं कि वह अपने साथी किसानों के साथ हिमाचल के सोलन में पहुंचा और वहां उसने मधुमक्खी के बॉक्स खरीदे। एक बॉक्स उसे तीन हजार रुपए में मिला। 9 बॉक्स वह खरीदकर ले आया था। प्रत्येक बॉक्स में 9 फ्रेम स्लाइड होते है। जिनमें मधुमक्खियां शहद बनाती है। संजय ने बताया कि वैसे तो उसके घर वाले वर्ष 2000 से पहले ही मधुमक्खी पालते थे, लेकिन कभी बडे स्केल पर काम करने की नहीं सोची। उसने 10-12 साल पहले मधुमक्खी पालन शुरू किया था। शुरुआती दौर में उसे कोई ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई। बस वह शहद बेचकर अपना गुजारा कर रहा था।

खेत में लगाए शहद के लिए बॉक्सों का दृश्य।
खेत में लगाए शहद के लिए बॉक्सों का दृश्य।

कोरोना ने डाला गहरा असर और घट गई बॉक्स की संख्या
पांच-छह सालों तक ऐसा ही चलता रहा। उसने अपने काम को बढ़ाना चाहा। फिर उसने धीरे-धीरे बॉक्स की संख्या बढ़ानी शुरू कर दी। 2020 तक उसके पास 100 से ज्यादा बॉक्स हो चुके थे और वह टनों में शहद का उत्पादन कर रहा था, लेकिन कोरोना संकटकाल में उस पर भी भारी असर डाला। लिहाजा नुकसान शुरू हो गया, जिसके बाद बॉक्स की संख्या भी घटती चली गई और आज वह सिर्फ 40 से 50 बॉक्सों से शहद उत्पादन कर रहा है, लेकिन फिर भी अच्छी आमदनी कर रहा है। संजय का टारगेट है कि वह पहले की तरह 100 से ज्यादा बॉक्स करे और शहद का उत्पादन करे।

ऑल इंडिया में करता है शहद की सप्लाई
संजय ने बताया कि उसके शहद की क्वालिटी अच्छी है और वह किसी भी तरह का स्प्रे नहीं करता है उसका शहद नेचुरल है और इसी वजह से लोग उसका शहद पसंद करते हैं। शहद की मांग लोकल एरिया में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी है और वह डिलीवरी खुद ही करता है। संजय बताता है कि जब भी वह प्रदर्शनी में स्टॉल लगाता है तो शहद के गुणों के बारे में बताता है। संजय बताता है कि शहद सर्दियों में सबसे ज्यादा बिकता है। नवंबर में उत्पादन शुरू हो जाता है और यह अप्रैल महीने तक चलता है। आमदनी मार्केट पर निर्भर रहती है, ज्यादा शहद बिकता है तो आमदनी ज्यादा हो जाती है और कम सेल होती है तो आमदनी भी कम होती है।

करनाल मे लगाए शहर के स्टॉल का दृश्य।
करनाल मे लगाए शहर के स्टॉल का दृश्य।

आजीवन कुंवारा रहने का संकल्प
संजय आज 35 वर्ष का हो चुका है लेकिन उसने अभी तक शादी नहीं की है। वह ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ है और अध्यात्म के मार्ग पर चल रहा है। वह 18 साल पहले जुड़ा था। उसने ब्रह्माकुमारी सेंटर पर सात दिन का मेडिटेशन कोर्स किया था और उसके बाद से ही वह इस संस्था से जुड़ा हुआ है और अपने मां बाप की सेवा कर रहा है। उसके अलावा उसके तीन भाई और है।

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