भिवानी । घर पर मसाले और अचार के साथ मोटे अनाज के दलिया तैयार करने वाली महिला आज मसाला उत्पादन के क्षेत्र में बड़े कारोबारियों को भी सीधी टक्कर देने की हिम्मत रखती है। भिवानी जिले के कस्बा बहल की रेखा रानी मूल रूप से राजस्थान के हनुमानगढ़ के गांव हरिपुरा की रहने वाली है। आज रेखा रानी न केवल अपना कारोबार चला रही हैं, बल्कि यूएसए में बैठे लोगों को भी तीखी मिर्च और मसालों का स्वदेशी स्वाद चखा खूब नाम कमा रही हैं।
शादी के बाद बहल में अपनी ससुराल आने के बाद उसके मन घर के अंदर मसाले पीसने की ललक ने उसे लाखों का कारोबारी बना डाला। रेखा के कारोबार से आसपास के गांवों में महिलाएं भी खुद के मसालों की दुकानें खोल रही हैं, जिसकी वजह से उन महिलाओं के परिवार को भी सबल मिल रहा है। बहल निवासी 32 वर्षीय रेखा रानी का कहना है कि उसके पति संदीप तिवारी प्राइवेट संस्था में बतौर अध्यापक हैं। उसकी आठ साल की एक बेटी इशिका तिवारी है।
रेखा ने करीब दो साल पहले अपने घर पर ही मिर्च मसाले, अचार और गेहूं का दलिया और बाजरे की खिचड़ी तैयार करना शुरू किया था। उसके मसाले और खिचड़ी के स्वाद की महक देश के कोने-कोने तक पहुंच गई। रेखा ने स्वावलंबन और स्वरोजगार की ऐसी रेखा खींची की, पारिवारिक आर्थिक समस्याएं भी उसके आगे छोटी पड़ गई और सैकड़ों महिलाओं के दुख-दर्द और आर्थिक तकलीफें भी सब चक्की में पीस गई। रेखा के मसाले और अचार के अलावा बाजरे की तैयार खिचड़ी जिसे उबालकर और फिर सुखाकर तैयार किया जाता है। उसका स्वाद गजब है। इसकी डिमांड राजस्थान के झुंझुनू, चेन्नई, मद्रास, दिल्ली, गुरुग्राम और यूएसए तक है।
दरअसल, रेखा राजस्थान के किसानों से ही जीरा, मिर्च, धनिया और हल्दी खरीदकर लाती है। इसे वे खुद ही तैयार करते हैं। एक माह पहले ही प्रधानमंत्री मुद्रा लोन से दस लाख का ऋण लेकर रेखा ने बहल में खुद का कारोबार खड़ा किया है। क्योंकि उसके मसाले और खिचड़ी की डिमांड ही इतनी थी कि जिसे पूरा करने के लिए फैक्टरी लगाना जरूरी हो गया था। रेखा से गांव सुरपुरा, गोकुलपुरा, बिधनोई सहित आसपास के इलाके की महिलाएं भी मसाले लेकर खुद की दुकानें खोलकर कारोबार कर रही हैं।
सामान्य नहीं है रेखा की बाजरे की खिचड़ी
आम तौर पर दुकान से खरीदकर लाया दलिया और खिचड़ी बनाते समय वह इकट्ठा और ठोस हो जाता है, जिसका स्वाद भी कायम नहीं रहता। ऐसे में रेखा बाजरे को पहले उबालकर उससे खिचड़ी एक खास रेसिपी से तैयार करती है। इसके बाद उसे घर ले जाकर कुकर में तैयार करने पर वह इतनी मुलायम और स्वाद में बेमिसाल होती है कि खाने वाला उसे फिर खाने की चाह रखता है।
रेखा का कहना है कि वे पॉलिश की दालों के अलावा सामान्य दालों का इस्तेमाल करते हैं। मिर्च के अचार की डिमांड भी काफी बनी रहती है। उनके उत्पाद लंबे अर्से तक रखने पर भी खराब नहीं होते हैं। रेखा ने आरडीएम के नाम से खुद का ब्रांड भी बनाया है। दस लाख के लोन में उसे साढ़े तीन लाख की सब्सिडी मिली है। जिसके बाद उसने दो बड़े हॉल किराये पर लेकर उसके अंदर साढ़े छह लाख की मशीनें भी लगाई हैं और करीब 13 से अधिक महिलाओं को भी रोजगार दिया है।