- …अगर जिंदा रहना है तो लगान तो देना पड़ेगा
- ब्रिटिश हुकूमत की बर्बरता और कत्लोगारत देख भावुक हुए दर्शक
- वंदे मातरम के जयकारों ने देश भक्ति के रंग में रंगे दर्शक
- आजादी की लड़ाई में हरियाणा का बड़ा योगदान रहा : उपायुक्त डा. जय कृष्ण आभीर
नारनौल, कानोड़ न्यूज (विनीत पंसारी) । “…अगर जिंदा रहना है तो लगान तो देना पड़ेगा”। मनीष जोशी के नाटक दास्तान-ए-रोहनात में अंग्रेज पात्र के इस डायलॉग के साथ कोड़े बरसाने से शुरू हुई ब्रिटिश हुकूमत की बर्बरता कोल्हड़ी व रोड रोलर पर जाकर खत्म हुई। आजादी के अमृत महोत्सव के तहत सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग तथा जिला प्रशासन की ओर से सभागार में आयोजित इस नाटक में नरसंहार और कत्लोगारत की इस अनकही-अनसुनी कहानी ने दर्शकों को भावुक कर दिया। वहीं दूसरी तरफ वंदे मातरम के जयकारों से वातावरण को देश भक्ति के रंग में रंग दिया। कार्यक्रम का आगाज मुख्यातिथि के तौर पर पहुंचे उपायुक्त डॉ जय कृष्ण आभीर ने दीप प्रज्वलित कर किया।
कार्यक्रम में संबोधित करते हुए उपायुक्त डॉ जय कृष्ण आभीर ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम को लेकर बने ऐसे कार्यक्रमों से हमारी युवा पीढ़ी को देश की आजादी के संग्राम के बारे में सही जानकारी मिलती है। देश की आजादी के लिए दिए गए हमारे पूर्वजों के बलिदान को हमें हमेशा याद रखना है। हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में हरियाणा का बड़ा योगदान रहा है। चाहे 1857 व उसके बाद की क्रांति हो हरियाणा का अहम रोल रहा है। 1947 तक हमारे बुजुर्गों ने बहुत ही कठिन हालात में अपना जीवन गुजारा और अंग्रेजों को यहां से भगाया। 1857 में भिवानी जिले के गांव रोहनात की इस कहानी को हरियाणा सरकार ने पूरे प्रदेश में बताने का फैसला किया है। इसी कड़ी के तहत सभी जिलों में यह नाटक प्रदर्शित किया जा रहा है। कार्यक्रम के अंत में उपायुक्त ने सभी कलाकारों की हौसला अफजाई की।
इस मौके पर सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग की भजन मंडली ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया।
इस मौके पर नारनौल एसडीएम मनोज कुमार सीएमजीजीए कृतिश कुमार, डीआईओ हरीश के अलावा अन्य अधिकारीगण, विभिन्न एनजीओ के सदस्य व आमजन मौजूद थे।
नोन्दा जाट, बिरड़ा दास व रूप राम खाती और रोहनात गांव के लोगों के आजादी के लिए कड़े संघर्ष दिखाया
दास्तान-ए-रोहनात नाटक भिवानी के गांव रोहनात के गुमनाम नायकों पर आधारित है। इसमें ऐसे गुमनाम हीरो को दिखाया गया है जिन्होंने आजादी के लिए कड़ा संघर्ष किया लेकिन इतिहास के पन्नों में उनकी गौरव गाथा को वह स्थान नहीं मिल पाया। ऐसे ही गुमनाम नायकों नोन्दा जाट, बिरड़ा दास व रूप राम खाती और रोहनात गांव के लोगों के आजादी के लिए कड़े संघर्ष को इस नाटक के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। नाटक में रोहनात गांव के कुंए तथा बरगद के पेड़ का इतिहास भी दिखाया है। इसके अलावा जिंदा लोगों पर कोल्हड़ी व रोड रोलर चलाकर उनकी नृशंस हत्या दिखाई गई है।
गजब की वस्त्र व मंच सज्जा दिखाई
नाटक में वस्त्र व मंच सज्जा गजब की दिखाई दे रही है। पूरे नाटक में सीन इस तरह दिखाई दे रहे थे जैसे हम 1857 के उस दौर में पहुंच गए हों। इसमें निर्देशन संगीत नाटक अकादमी सम्मान के उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से सम्मानित मनीष जोशी ने किया है। नाटक की नृत्य संरचना प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना राखी दुबे ने की है। लेखन यशराज शर्मा का है और वस्त्र सज्जा और मंच सज्जा सारांश भट्ट द्वारा की गई है। लेखन यशराज शर्मा ने किया। नृत्य संरचना राखी दुबे ने की है। मंच और वस्त्र विन्यास – परिकल्पना – सारांश भाट का है। गायन – अनिल मिश्रा, संगीत संचालन- निपुण कपूर, प्रकाश परिकल्पना – संगीत श्रीवास्तव / मनीष जोशी, गीत – ओ पी धनखड़ / वीएम बेचैन, मंच व्यवस्था -विकास मेहता, अपूर्व भारद्वाज व नरेश भारतीय ने की है।
इन्होंने निभाई भूमिका
1. यशराज शर्मा/नौंदा जाट
2. अतुल लंगाया / बिरडा दास
3. कबीर दहिया / रूप राम खाती
4. गौरव खेरवाल / अंग्रेज़
5. मधुर भाटिया/ भवनेश लूथरा – ब्रिटिश अधिकारी
6. कामेश्वर/ अंग्रेज़
7. नवनीत शर्मा / अंग्रेज़
8. स्नेहा बिश्नोई / पत्नी रूप राम खाती
9. हर्षिता सुथार/ पत्नी नौंदा जाट
10. प्रकृति/ पत्नी बिरडा दास
11. नरेश चंदर / किसान
12. विशाल कुमार/जासूस
13. अनूप / ग्रामीण
14.दिवांशु तनेजा / ग्रामीण
15.संदीप कुमार /ग्रामीण
16.राम नारायण / ग्रामीण
17.भारत सिंह / ग्रामीण
18..सौरभ / ग्रामीण
19.सोनू / ग्रामीण गूंगा
20.विश्वराज जोशी/ग्रामीण
21.निमिषा / नृत्य