सवा लाख लीटर गंगाजल से बनेगा वार्षिक भंडारे का प्रसाद, हरिद्वार से पहुंचा गंगाजल का कैंटर

  • जहरगिरी आश्रम में 31 दिसंबर को आयोजित होगा वार्षिक भंडारे का आयोजन

भिवानी, कानोड़ न्यूज । स्थानीय हालुवास गेट स्थित सिद्धपीठ बाबा जहरगिरी आश्रम में हर वर्ष पोष मास शुक्ल पक्ष नवमी को बाबा जहरगिरी की स्मृति में वार्षिक भंडारे का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश भर से साधु-संत एवं श्रद्धालुगण पहुंचते है तथा प्रसाद चखते है।

इसी कड़ी में इस वर्ष 31 दिसंबर को वार्षिक भंडारे का आयोजन किया जाएगा। भंडारे में बनने वाले प्रसाद को गंगाजल से बनाया जाता है। यह जानकारी देते हुए आश्रम के प्रवक्ता सुरेश सैनी ने बताया कि वार्षिक भंडारे का पूर्ण कार्यक्रम आश्रम के पीठाधीश्वर अंतर्राष्ट्रीय श्रीमहंत जूना अखाड़ा डॉ. अशोक गिरी महाराज की देखरेख में आयोजित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि भंडारे में बनने वाले प्रसाद को गंगाजल से बनाया जाता है, जिसके लिए पिछले कई वर्षो से विशेष तौर पर हरिद्वार से गंगाजल से भरे कैंटर मगवाएं जाते है।

उन्होंने बताया कि इस बार भी सवा लाख लीटर गंगाजल से वार्षिक भंडारे में प्रसाद बनेगा, जो कि आश्रम परिसर में पहुंचना शुरू हो चुका है। जिसकी पूजा-अर्चना भी की गई। सैनी ने बताया कि वार्षिक भंडारे में देश भर से साधु-संत एवं श्रद्धालुगण पहुंचते है जो भंडारे का प्रसाद चखकर बाबा जहरगिरी का आर्शीवाद लेते है।

इस मौके पर बाबा कैलाशगिरी, घनश्याम यति, भग्गू गिरी महाराज, नगर परिषद पूर्व चेयरमेन मामनचंद प्रजापति, सुनील बौंदिया, किरोड़ी हलवाई, नरेश सैनी, रामसिंह तवंर, बसंत शास्त्री, जग्गू सैनी, सोनू गुज्जर भी मौजूद रहे।

गंगाजल का महत्व
श्रीमहंत डॉ. अशोक गिरी महाराज ने गंगाजल का महत्व बताते हुए कहा कि गंगा जल को पवित्र माना जाता है। गंगा महादेव की जटाओं से निकलती है। इसलिए यह पवित्र है। गंगा का पानी गंगा जल हर तरह के कामों में काम आता है, चाहे वह पूजा हो या फिर घर की शुद्धि आदि के लिए। वैदिक ग्रंथों में शुभ कामों में गंगा जल का प्रयोग होता हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसा माना जाता है कि मां गंगा में नहाने व पूजा आदि करने से कई तरह के पाप कटते हैं। गंगा के पानी में कई प्रकार के औषधिय गुण पाए जाते हैं, जिसमें नहाने से कई प्रकार के रोग खत्म हो जाते हैं। गंगा जल को हमेशा घर पर रखने से सुख और संपदा बनी रहती है। इसलिए एक पात्र में हमेशा गंगा जल भरकर रखें। श्रीमहंत ने कहा कि सर्वमान्य तथ्य है कि युगों पहले भागीरथ जी गंगा की धारा को पृथ्वी पर लाये थे, भागीरथ जी गंगा की धरा को हिमालय के जिस मार्ग से लेकर मैदान में आए वह मार्ग जीवनदायनी दिव्य औषधियों व वनस्पतियों से भरा हुआ है। इस कारण भी गंगा जल को अमृततुल्य माना जाता है।

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