30 और 31 अगस्त को रक्षाबंधन पर्व मनेगा। दो दिन इसलिए क्योंकि पूर्णिमा तिथि 30 को सुबह करीब 11 बजे से अगले दिन सुबह 7.37 तक रहेगी। इसी कारण राखी बांधने के लिए दो मुहूर्त रहेंगे।
BHU के ज्योतिष विभागाध्यक्ष, प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री का कहना है कि रक्षाबंधन के लिए 30 अगस्त की रात में 9 बजे से 9.54 तक श्रेष्ठ मुहूर्त है, लेकिन 11.13 तक भी राखी बांध सकते हैं। वहीं, 31 को सुबह 6.30 से 7.37 तक रक्षाबंधन कर सकते हैं।
इस त्योहार पर दुर्लभ संयोग बन रहा है। 30 तारीख को बुधादित्य, गजकेसरी, वासरपति, भ्रातृवृद्धि और शश योग रहेंगे। इस तरह सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र और शनि पंच महायोग बना रहे हैं। रक्षाबंधन पर तिथि, वार, नक्षत्र और ग्रह स्थिति का ऐसा संयोग पिछले 700 सालों में नहीं बना।
30 को खरीदारी के लिए पूरा दिन शुभ रहेगा
ज्योतिषियों का कहना है कि 30 अगस्त को सितारों के शुभ संयोग बनने से पूरे दिन खरीदारी का शुभ मुहूर्त रहेगा। इसमें व्हीकल, प्रॉपर्टी, ज्वेलरी, फर्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक सामान और अन्य चीजों की खरीदारी से लंबे समय तक फायदा मिलेगा। साथ ही किसी भी शुरुआत के लिए यह दिन बहुत अच्छा रहेगा।
रक्षाबंधन की परंपरा वैदिक काल से चल रही है। राजा अपने राज्य की सीमाएं बढ़ाने के लिए विजय अभियान चलाकर शत्रुओं पर हमला कर देते थे, इसलिए दुश्मनों से रक्षा के लिए सावन महीने की पूर्णिमा पर रक्षाबंधन मनाने की परंपरा शुरू हुई।
सावन महीने की पूर्णिमा पर कुल-पुरोहित और गुरु दिन के तीसरे-चौथे पहर में रक्षा मंत्र पढ़ते हुए रक्षा पोटली बनाते थे। जिसमें सूती या रेशमी कपड़े में सरसों, चावल, सोना, केसर, दूर्वा और चंदन होता था।
ये रक्षासूत्र पूजा-पाठ के बाद राजा और प्रजा की रक्षा के लिए सभी को बांधा जाता था। बाद में इस परंपरा में बदलाव हुआ। तब घर का बड़ा सदस्य परिवार के सभी छोटे लोगों को रक्षासूत्र बांधने लगा। इसके बाद अब ये बहन और भाई का त्योहार बन गया।
भविष्य पुराण में कहा गया है कि इस तरह बांधा गया रक्षासूत्र सुख-समृद्धि और जीत दिलाता है। पूरे साल बीमारी और परेशानियों से भी बचाता है।
देशभर में रक्षाबंधन की अलग-अलग परंपराएं
देशभर में सावन पूर्णिमा पर अलग अलग परंपराओं के साथ ये त्योहार मनाया जाता है। राखी केवल भाई बहनों का ही त्योहार नहीं, बल्कि ये कहीं मछुआरों का त्योहार है तो कहीं नई शुरुआत का दिन भी है।
कजरी पूर्णिमाः मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश के कुछ स्थानों में यह दिन कजरी पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन माएं जौ को सिर पर रख यात्रा निकालती हैं और तालाब या नदी में इसका विसर्जन किया जाता है।
नारली पूर्णिमाः महाराष्ट्र में राखी के साथ नारली पूर्णिमा भी मनाई जाती है। राज्य के कोली समुदाय के लोग समुद्र देवता को नारियल अर्पित करते हैं। इसी के साथ मछली पकड़ने की शुरुआत भी होती है। वहीं, गुजरात में इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है जिसे पवित्रोपना त्योहार कहा जाता है।
गम्हा पूर्णिमाः उड़ीसा में इसे गम्हा पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है जिसमें घरेलू गाय-बैलों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश क्षेत्र में ये दिन अवनीअवित्तम और उपाकर्म के रूप में मनाया जाता है। ये दिन वैदिक पाठ शुरू करने के लिए उत्तम माना जाता है।
जनै पूर्णिमाः नेपाल में राखी जनै पूर्णिमा के नाम से मनाई जाती है। इस दिन नेवार समुदाय के लोग मेंढक को खाना देते हैं। मान्यताओं के अनुसार उन्हें वर्षा देवता का संदेशवाहक माना जाता है।
बग्वाल मेलाः उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा गांव में हर साल राखी पर ‘बग्वाल’ मेले का आयोजन किया जाता है। वाराही देवी मंदिर के प्रांगण में स्थानीय जनजातियों द्वारा पत्थरों से युद्ध खेला जाता है।