नारनौल सिविल अस्पताल में डिब्बों में बंद पड़ा किसी का दिल, किसी का गुर्दा; मोर्चरी में विसरा की संख्या बढ़ी

नारनौल । नारनौल नागरिक अस्पताल में किसी मृतक का दिल तो किसी के गुर्दे का हिस्सा महीनों से मोर्चरी कक्ष में सड़ रहा है। करीब 15 साल से यहां विसरा तो सुरक्षित किया जा रहा है, लेकिन न तो इनकी कोई पहचान हो पाई है और न ही कोई अपना इन्हें खोजने आया। ये विसरा के वह नमूने हैं जो मधुबन लैब नहीं भेजे जा सके।

अलमारियों में रखे विसरा नमूने डिब्बों में सड़ रहे
इसी कारण मोर्चरी कक्ष में विसरा नमूने की संख्या बढ़कर 250 के पार पहुंच गई है। इनमें से कोई विसरा लावारिस शव से लिया गया है तो कोई भ्रूण से, लेकिन यह आजतक अपनी पहचान के मोहताज हैं। जिले में हत्या व संदिग्ध हालात में मौतें होती हैं तो शव नारनौल के नागरिक अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए लाए जाते हैं। मौत के कारणों का पता लगाने के लिए पोस्टमार्टम के बाद इन शवों के अंगों से विसरा जांच के लिए लेते हैं। इसके बाद विसरा मधुबन या अन्य लैब में भेजकर जांच करवाई जाती है। विडंबना यह है कि करीब 250 विसरा को अब तक जांच के लिए भेजा ही नहीं गया है। ये विसरा नमूने मोर्चरी में डिब्बों में बंद होकर सड़ रहे हैं।

मोर्चरी में जगह का अभाव
विसरा मोर्चरी की अलमारियों सहित फर्श पर रखे हुए हैं। अब तो हालात यह बन गए है कि अलमारियों में भी जगह कम पड़ गई है, लेकिन 15 साल बीतने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की तरफ से डिब्बों में बंद विसरा जांच के सैंपल को नष्ट नहीं किया जा रहा है। हालांकि 3-4 साल पहले मोर्चरी इंचार्ज ने सीएमओ को विसरा नष्ट करने के लिए लिखा भी था, लेकिन अब तक मोर्चरी में रखे विसरा को नष्ट नहीं किया गया है। चिकित्सकों के अनुसार विसरा छह माह तक ही सुरक्षित रहता है। इसके बाद नमूने खराब हो जाते हैं।

जांच अधिकारी के अनुसार
मोर्चरी में अगर ज्यादा पुराने विसरा रखे हुए हैं तो जांच करवाई जाएगी। जो भी आगामी कार्रवाई बनेगी वह जल्द की जाएगी। -कंवर सिंह, चिकित्सा अधीक्षक, नागरिक अस्पताल, नारनौल।

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