- राज्य में सितंबर 2024 तक चुनाव कराने का आदेश
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। इस दौरान अपने फैसले में पीठ की अध्यक्षता कर रहे देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि देश के सभी राज्यों के पास विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं। संविधान का अनुच्छेद 370 अलग-अलग राज्यों को विशेष दर्जा देने का उदाहरण है। यह साफ तौर पर असममित संघवाद का उदाहरण है। जम्मू कश्मीर की भी अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरह कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है।
अस्थायी प्रावधान था संविधान का अनुच्छेद 370
सीजेआई ने कहा कि हमारा मानना है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। हस्तांतरण के उद्देश्य से इसे लागू किया गया था। राज्य विधानसभा के गठन के लिए इसे अंतरिम तौर पर लागू किया गया था। सीजेआई ने कहा कि राज्य में युद्ध के हालात के चलते विशेष परिस्थितियों में इसे लागू किया गया था। इसके लिए संविधान में प्रावधान किए गए हैं। राष्ट्रपति के आदेश की संवैधानिकता पर सीजेआई ने कहा कि फैसले के वक्त राज्य की विधानसभा भंग थी, ऐसे में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का नोटिफिकेश जारी करना राष्ट्रपति की शक्तियों के तहत आता है।
जम्मू कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं
चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान में कहीं इसका उल्लेख नहीं है कि जम्मू कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता है। युवराज कर्ण सिंह की साल 1949 में की गई उद्घोषणा और संविधान से इसकी पुष्टि होती है। संविधान के अनुच्छेद 1 के तहत ही जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया था। भारत में विलय के बाद जम्मू कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं बची थी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि राष्ट्रपति की रोजमर्रा के कामकाज संबंधी शक्तियों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती। संविधान के अनुच्छेद 357 के तहत राज्य की विधानसभा की कानून निरस्त करने या संशोधित करने की शक्ति को संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम के संदर्भ में पढ़ा जाना चाहिए।
क्या कहा गया था सुनवाई के दौरान
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह और दुष्यंत दवे समेत अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया है। मामले पर सुनवाई 2 अगस्त को शुरू हुई थी। याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले की वैधता और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की वैधता पर सवाल उठाए है। जिसने पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र अपने फायदे के लिए सब कुछ कर रहा है और देश के नियमों का पालन नहीं कर रहा है।
केंद्र ने 5 अगस्त 2019 को 370 हटाया, इसके खिलाफ 23 याचिकाएं
मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 खत्म कर दिया था। साथ ही राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 23 याचिकाएं दाखिल हुई थीं। पांच जजों की बेंच ने सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई की थी।
सुप्रीम कोर्ट में लगातार 16 दिन तक चली सुनवाई 5 सितंबर को खत्म हुई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। यानी सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के 96 दिन बाद केस पर फैसला सुनाया।
किसने किस पक्ष की तरफ से पैरवी की
सरकार की तरफ से- अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ वकील हरीष साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरि।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से- कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह और दुष्यंत दवे।
याचिकार्ताओं ने दिया आर्टिकल 370 को लेकर ये तर्क
उन्होंने ये भी तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 के प्रावधान को निरस्त नहीं किया जा सकता था क्योंकि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल 1957 में पूर्ववर्ती राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद समाप्त हो गया था।उन्होंने कहा कि संविधान सभा के विलुप्त हो जाने से अनुच्छेद 370 को स्थायी दर्जा मिल गया। वहीं अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य ने केंद्र की ओर से बहस की। जिसमें उन्होंने कहा कि आर्टिकल 370 के प्रावधानों को रद्द करने में कोई संवैधानिक धोखाधड़ी नहीं हुई है।
फैसले को लेकर बढ़ाई गई घाटी की सुरक्षा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कश्मीर क्षेत्र के आईजीपी वीके बिरदी ने रविवार को कहा कि शांतिपूर्ण माहौल बनाए रखने के लिए सुरक्षा के पर्याप्त इंतेजाम किए गए हैं। उन्होंने कहा कि घाटी में हर परिस्थिति में शांति बनाए रखने के लिए पूरी कौशिश की गई है।