बादाम से भी डेढ़ गुना महंगी बिक रही ये सब्जी, वंदे भारत ट्रेन की टिकट भी इससे सस्ती

जोधपुर @ कानोड़ न्यूज । क्या आपने सुना है कि एक ऐसी सब्जी है जो इन दिनों बादाम से भी ज्यादा दाम में बिक रही है। यहां तक कि वंदे भारत ट्रेन की टिकट भी इससे सस्ती है। इतना ही नहीं यदि आप हिसाब लगाना चाहे तो एक महीने की पूरी सब्जी आ सकती है।

अचानक दोगुने हुए दाम की वजह से सब्जी व्यापारी भी चिंता में हैं और किसान भी। कारण है एक छोटा सा रोग।

हालात ये है कि एक छोटे से रोग ने करोड़ों का बिजनेस प्रभावित कर दिया है। अब इस सूखी सब्जी को खरीदने के लिए भी लोगों को दस बार सोचना पड़ रहा है।

दरअसल, मारवाड़ अंचल में होने वाली सांगरी ने इन दिनों बिजनेस का जायका बिगाड़ कर रख दिया है।

पढ़िए- कैसे अचानक इस सब्जी के दाम बढ़े….

दरअसल, जोधपुर और बाड़मेर के आस-पास इलाकों से हर साल सांगरी बाजार में बिकने के लिए आती है। एक अनुमान के मुताबिक एक बार में 50 टन के करीब इसकी पूरे सीजन में खपत होती है। लेकिन, इस बार गिलडू रोग की वजह से इसका प्रोडक्शन पूरी तरह से प्रभावित हो गया।

इस एक रोग ने पूरे प्रोडक्शन पर ब्रेक लगा दिया। व्यापारियों का कहना है कि इस रोग की वजह से इस बार प्रोडक्शन 35 प्रतिशत यानी करीब साढ़े 17 टन ही रह गया।

यही कारण रहा कि इस बार सांगरी के भाव 1200 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गए हैं।

इस रोग के दो कारण

पहला बारिश: जानकारों की माने तो इस मार्च के बाद से जोधपुर समेत आस-पास के इलाकों में जहां सांगरी होती है, वहां सबसे ज्यादा बारिश का प्रभाव रहा। ऐसे में इसका सबसे ज्यादा असर सांगरी पर देखने को मिला।

दूसरा टेम्प्रेचर: दूसरा सबसे बड़ा कारण टेम्प्रेचर भी रहा है। मार्च के बाद जोधपुर व बाड़मेर के इलाकों में गर्मी असर दिखाना शुरू कर देती है। तापमान अप्रैल तक 40 तक पहुंच जाता है, लेकिन इस बार टेम्प्रेचर 35 डिग्री के आस-पास ही रहा।

इन्हीं दो कारणों की वजह से सांगरी की फली पकी नहीं और इनमें बीमारी लग गई।

महंगी सब्जी के आगे सब सस्ता

  • बाजार में अभी सूखी सांगरी 1000 से 1200 रुपए के बीच प्रति किलो बिक रही है। पिछली बार 600 से 800 रुपए प्रति किलो के भाव थे।
  • वंदे भारत ट्रेन में जयपुर से दिल्ली का सफर एसी चेयर कार में 880 रुपए में कर सकते हैं।
  • एक महीने के लिए परिवार के चार लोगों का मोबाइल रिचार्ज।
  • पूरे परिवार के लिए एक महीने के लिए बाजार से आने वाली सब्जियां।
  • यदि आप अमेरिकन बादाम लेने जा रहे हैं तो 800 रुपए में वह भी मिल जाएगी।

बाजार में भाव ज्यादा होने से व्यापारियों और किसानों दोनों को काफी नुकसान हुआ है। काजरी में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक अर्चना वर्मा ने बताया कि सर्दियों में टेम्प्रेचर इस बार काफी सामान्य था। और, गर्मी ने भी इतना असर नहीं दिखाया। ऐसे में इन कीड़ों को अनुकूल माहौल मिलने से खेजड़ी पर ये रोग पनपने लगा।

व्यापारी बोले: तीन साल बाद अमेरिकन बादाम से ज्यादा भाव

मंडी व्यापारी रवि पुंगलिया ने बताया कि इस बार सांगरी के भाव बढे हैं। मार्केट में भी खेप कम आई है। उन्होंने बताया कि जब लॉकडाउन लगने वाला था तब मार्च 2020 में सांगरी पहली बार 1 हजार रुपए किलो बिकी थी।

अभी अमेरिकन बादाम की बात की जाए तो उसके भाव 800 रुपए प्रति किलो है। लेकिन, तीन साल बाद एक बार फिर से इसके भाव 1200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिक रही है।

मार्च-अप्रैल में सबसे ज्यादा प्रोडक्शन, एक साल तक रखते हैं स्टॉक

किसान संघ के नेता तुलसाराम सीवर ने बताया कि इस बार सांगरी का प्रोडक्शन बीमारी की वजह से 35 प्रतिशत तक ही रह गई है। सांगरी में गांठें हो गई हैं, जिसकी वजह से सांगरी बन नहीं पाई। उन्होंने बताया कि अप्रैल में इसकी फ्लॉवरिंग होती है। ये इसके प्रोडक्शन का सबसे पीक टाइम होता है। इसी दौरान इसे तोड़ा जाता है और एक साल तक इसे स्टॉक रखते हैं।

उन्होंने बताया कि सामान्य हर साल पूरे प्रोडक्शन का 70 प्रतिशत हिस्सा की मार्केट में आता है। ऐसे में मार्केट तक औसतन 35 प्रतिशत सांगरी ही मार्केट तक पहुंच पाई है।

महाराष्ट्र और गुजरात की मंडियों में भी संकट

राजस्थान के बाहर जहां प्रवासी राजस्थानी बसे हैं, वहां सांगरी की डिमांड सबसे ज्यादा रहती है। सांगरी के साथ केर व कुमट मिक्स कर पंचकुटा बनाया जाता है। केवल पश्चिमी राजस्थान में ही सबसे ज्यादा इसका प्रोडक्शन होता है।

जोधपुर से महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, पंजाब सहित दक्षिण भारत के कई राज्यों व देश की बड़ी मंडियों में इसकी डिमांड रहती है और इसे इन शहरों की मंडियों में भी भेजा जाता है। लेकिन, इस बार लोकल लेवल पर ही सप्लाई कम होने से इस बार इन मंडियों में भी सप्लाई को 10 प्रतिशत तक ही कर दिया है। यहां भी केवल डिमांड पर ही सांगरी को सप्लाई किया जा रहा है।

जोधपुर के काजरी में थार शोभा सांगरी, बिना कांटों वाली खेजड़ी

काजरी वैज्ञानिक अर्चना वर्मा ने बताया कि काजरी में 278 पेड़ है। इन पर इस पर 1251 किलो का प्रोडक्शन हुआ है। उन्होंने बताया कि थार शोभा खेजड़ी आम खेजड़ी से बिल्कुल अलग हैं।

इसे ब्रीडिंग तकनीक से तैयार किया गया है। इसलिए इनका नाम थार शोभा रखा गया है और इस पर कांटे भी नहीं होते। उन्होंने बताया कि इन पर दूसरी सांगरी की तरह बीमारियां भी नहीं लगती। इस पर तीन साल में सांगरी लग जाती है और पांच साल में एक झाड़ में साढे चार किलो तक इसका प्रोडक्शन होने लगता है।

इम्युनिटी बूस्टर, महाभारत में भी इसका जिक्र
इस सब्जी को इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर भी माना जाता है। इसके अलावा महाभारत में भी इनका वर्णन मिलता है। गुणों में ये सूखे मेवों से कम नहीं हैं। सांगरी में पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, आयरन, जिंक, प्रोटीन और फाइबर से भरपूर है। इसमें पाया जाने वाला सैपोनिन कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित रखने एवं प्रतिरक्षा को बढ़ाने में उत्तम है। यही कारण है कि मारवाड़ में ये सब्जी काफी सामान्य तौर पर बनाई जाती है।

अकाल में लोगों के लिए वरदान साबित हुई थी ये सब्जी

मारवाड़ में साल 1899-1900 के बीच अकाल पड़ा। जिसे छप्पनिया-काळ कहा गया। इस अकाल को लेकर ये कहा जाता है कि ये दौर ऐसा था कि लोगों के लिए न तो खाने के लिए कुछ था और न पीने के लिए।

लेकिन, इस भीषण सूखे में रेगिस्तानी इलाकों में खेजड़ी (जिन पर सांगरी की फली होती है) और केर सूखे नहीं। बताया जा रहा था कि जब लोगों और जानवरों के लिए खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा तो केर और सांगरी की फली लोगों के लिए खूब काम आई। ऐसा कहा जाता है कि खेजड़ी की छाल और फली तक लोग कच्ची खाकर गुजारा करने लगे। 100 साल पहले ये ही वो दौर था जब ये जायका मारवाड़ की रसोई तक पहुंचा।

इसी सांगरी से बनती है फाइव स्टार होटल की सबसे महंगी सब्जी

सांगरी से पंचकुटा की सबसे फेमस सब्जी तैयार की जाती है। ये सब्जी पांच तरह की वनस्पति है, जो अलग-अलग पेड़ पौधों से प्राप्त होती है। केर-सांगरी, कुमटी, बबूल फली, गुंदा या कमलगट्टा और साबुत लाल मिर्च हो तो इसे कोई भी मारवाड़ी बड़े आराम से बना सकता है। ये सभी चीजें मार्केट में अलग-अलग मिलती हैं। इन्हें बराबर क्वांटिटी में मिक्स कर दिया जाता है। पंचकुटा में गुंदा या कमलगट्टा में से कोई एक चीज मिलाई जाती है।

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